Wednesday 14 July, 2010

प्रेम और प्रेम का विज्ञापन

                      प्रेम - इस ढाई अक्षर के शब्द के बिना जीवन का शब्दकोष कितना अधूरा  हो जाएगा ? इंसान के पास सब कुछ हो, लेकिन प्रेम न हो, तो उसे जीवन मे कहीं भी रस की प्राप्ति नहीं हो सकती- और नीरस जीवन भी कोई जीवन है. प्रेम विधाता की उत्कृष्टतम विधि है और मनुष्य की अमूल्यतम  निधि. मनुष्य के सम्पूर्ण और समन्वित  विकास हेतु प्रेम अतिआवश्यक तत्त्व है. प्रेम बिना सब कुछ सूना-सूना है.
                 प्रेम कहीं न कहीं भौतिक नियमों से परे प्रतीत होता  है . प्रेम के आकर्षण को भौतिकी के सिद्धांतों  से कोई कैसे  समझाये ?. माँ और बच्चों  का एक दूसरे के प्रति आकर्षण , पति-पत्नी का आकर्षण, मित्रों के मध्य आकर्षण - ये गुरुत्व के कारण तो होता नहीं है . होता है ये ममत्व के कारण , अपनत्व के कारण .
                  लोग कहते हैं की प्यार के विज्ञापन की आवश्यकता नहीं .''प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज नहीं, एक खामोशी है जो सुनती  है कहा करती है''.  हाँ, प्रेम जब परिपक्व हो गया हो , तो कहने सुनने की अधिक आवश्यकता नहीं , पर प्रेम जब अपरिपक्व हो या शुरूआती  दौर मे हो- तब तो कहने सुनने की कुछ न कुछ आवश्यकता रहती ही है . प्रायः देखा जाता है की मौन प्रेम को समझ पाने की क्षमता प्रत्येक व्यक्ति मे नहीं होती . सिर्फ परिपक्व व्यक्ति ही किसी व्यक्ति के मौन प्रेम को समझ सकने की क्षमता रखता  है . हाँ, मुखर प्रेम को समझने मे बहुत कम व्यक्तियों को कठिनाई हो सकती है ,क्यूंकि मुखर प्रेम विज्ञापित प्रेम है . मैने महसूस किया है की मन मे किसी व्यक्ति के प्रति प्रेम होना ही आवश्यक नहीं है, बल्कि आपका प्रेम उस व्यक्ति तक संप्रेषित हो सके, ये भी आवश्यक है . वास्तव मे प्रेम के अभाव से भी ज्यादा मुझे ये महसूस होता है की ''प्रेम होते हुए भी प्रेम के प्रभावी  सम्प्रेषण का अभाव''  दैनंदिन जीवन मे विभिन्न प्रकार की समस्यायों को जन्म देता है . 
              प्रायः देखा गया है की माँ -बाप अपने बच्चों से प्रेम तो करते हैं, पर बच्चों तक प्रेम का प्रभावी सम्प्रेषण न हो पाने के कारण बच्चे  ये समझते हैं की माँ बाप उनसे प्रेम नहीं करते. माँ-बाप के मन मे अपने प्रति प्रेम को लेकर बच्चों के मन मे एक किस्म का संदेह उत्पन्न हो  जाता है जो मुझे नहीं लगता की बच्चों के  स्वस्थ विकास के लिए उचित  है . कई बार पति-पत्नी के मध्य प्रेम के सुचारू सम्प्रेषण का अभाव दाम्पत्य जीवन मे अनेक प्रकार की व्यवहारिक दिक्कतों  को जन्म देता है .
                    मेरा कहना ये है की यदि आप किसी को प्रेम करते हैं तो उस व्यक्ति को ये महसूस  होना चाहिए  की आप उसे प्रेम करते है. ये उस व्यक्ति के स्वस्थ विकास के लिए भी आवश्यक है और और आपकी  संतुष्टि, ख़ुशी  और स्वविकास  के लिए भी. जहां  आपका प्रेम, आपकी परवाह , आपके दो मीठे शब्द  किसी व्यक्ति के जीवन को सकारात्मक दिशा प्रदान कर सकती है, वहीँ आपकी उपेक्षा भी शायद किसी व्यक्ति के जीवन को  पूर्णतः नकारात्मक दिशा मे धकेल सकती  है .
                      नदी मे बहुत अधिक मात्रा मे जल उपलब्ध होने और बादलों मे पर्याप्त मात्रा मे पानी होने मात्र से  ये जरूरी नहीं की खेत मे अच्छी फसल हो जाए . फसल तो तभी अच्छी होगी जब नदी का पानी नहरों के माध्यम से या बादलों का जल वर्षा  के  माध्यम से प्यासी धरती की प्यास बुझायेगा . प्रायः नदी मे बहुत पानी होता है, बादल भी पानी से भरे होते हैं फिर भी धरती प्यासी रह जाती है और पौधे सुख जाते हैं क्यूंकि नहर बन नहीं पाती , वर्षा हो नहीं पाती . प्रेम मन का मन ही मे रह जाता है , संप्रेषित हो नहीं पाता ,  ह्रदय सूखे रह जाते हैं और  ह्रदय के उद्यान मे जो पौधा पल्लवित हो सकता था , जो फूल खिल सकता था वो खिल नहीं पाता. ह्रदय का उद्यान मरुभूमि मे तब्दील हो जाता है . फिर नदी मे पानी रहने , बादलों  मे  पानी  भरे रहने और मन मे प्रेम होने बस  से क्या फायदा?  
                    व्यक्ति भी एक ऐसा पौधा है जो प्यार की खाद पर पलता है और बड़ा होता है . प्यार न मिले तो मुरझाने और कुम्हलाने लगता है .प्रेम करने के साथ साथ व्यक्ति  को प्रेम प्रदर्शित करने, प्रेम को विज्ञापित करने की कला मे भी माहिर होना  चाहिए. प्रेम विज्ञापित करना भी एक कला है, जो मुझे लगता है की सीखने योग्य है .
                    प्रायः देखा जाता है की अधिकतर अपरिपक्व और कई  बार तो तथाकथित परिपक्व व्यक्ति भी मन मे छद्म प्रेम रखने वाले किन्तु बेहतर ढंग से अपने प्रेम को विज्ञप्त करने वाले व्यक्ति के प्रभाव मे आसानी से आ जाते हैं जबकि मन मे सच्चा प्रेम रखने वाले परन्तु प्रेम को विज्ञप्त न कर पाने वाले व्यक्ति उपेक्षित हो जाते है  'छुपाना भी नहीं आता ,बताना  भी नहीं आता, हमें तुम से मुहब्बत है, जताना भी नहीं आता'' कहने बस से  कुछ नहीं होता, आपको मुहब्बत बताने और जताने की कला मे भी निपुण होना चाहिए .  छोटे बच्चों को तो प्रेम के विज्ञापन की आवश्यकता होती ही है, इसके बिना उनका काम नहीं चल सकता . बड़े बच्चों को भी इसकी कम आवश्यकता नहीं होती . अतः  व्यक्ति को सच्चा प्रेम करने के साथ साथ  आवश्यकता देखकर उस सच्चे प्रेम का विज्ञापन भी करना आना चाहिए.
                       वैसे ये भी सत्य है की प्रेम छुपाये नहीं छुपता. परन्तु प्रेम को  छुपाने की कोशिश करने से मुझे लगता है गलतफहमियां पैदा होती हैं जिसमे  लाभ की जगह हानि की संभावना ही अधिक प्रतीत होती  है. अतः ये उचित प्रतीत होता है की व्यक्ति अपने सच्चे प्रेम को जताने के तरीके सीखे. प्रेम करना सीखे और प्रेम का विज्ञापन करना भी .शायद ये व्यवहारिक भी है , उचित भी और बेहतर संबंधों के साथ साथ बेहतर समाज और बेहतर विश्व के निर्माण  मे सहायक भी.

7 comments:

  1. बाहर बढ़िया लेख....बागवान पिक्चर याद आ गयी...जिसमें अमिताभ बच्चन ने कहा है कि प्यार को बार बार कहना चाहिए कि हम तुमसे प्यार करते हैं...

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  2. व्यक्ति अपने सच्चे प्रेम को जताने के तरीके सीखे

    -बहुत जरुरी है जाहिर करना. उम्दा आलेख.

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  3. prem aur vyavhar alag karke dekhna chahiye. yah bhi dhyan rakhe ki ek prem aisa hota hai jo "i love you" ke bina to hota hi nahi aur hokar bhi sandigdh bana rahta hai. dusara aisa jaha is tarah ki verbal abhivyakti nirarthak hoti hai. pata nahi tv pidhi ke pahle kisi maa ne apne bete se yah kahne ki jarurat samjhi ho.

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  4. achchaa lekh - R K Kaushik

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  5. sundar lekh - Laxminarayan Tamboli

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