Thursday 22 July, 2010

प्रेम और प्रेम का आवेदनपत्र

We cannot get love n affection ,
By asking for it or sending a petition ,
The only way to get love n affection,
Above the earth n beneath the heaven,
   Is to, without any expectation, from anywhere,
Just disseminate love n affection everywhere.
                                                   -BALMUKUND
                   प्रेम मांगने या प्रेम हेतु आवेदनपत्र लिखने से  प्रेम नहीं मिलता. इस धरती के ऊपर  और आसमान के नीचे  प्रेम पाने का एक ही तरीका है -बिना किसी प्रतिफल की आशा किये सभी जगह , सभी लोगों पर प्रेम बिखेरना , प्रेम फैलाना . 
                    प्रेम मांगने से नहीं मिलता . हाँ, मांगने से सहानुभूति मिल सकती है, दया मिल सकती है,पर प्रेम नहीं मिल सकता. प्रेम का नियम अलग है .प्रेम देने से प्रेम मिलता है.  याचक  की भूमिका प्रेमी को शोभा नहीं देती . आजकल हम देखते हैं की अधिकाँश प्रेमी प्रेमिकाएं याचक की भूमिका में ही दिखाई देते हैं . लेने की इच्छा प्रेमी प्रेमिका दोनों में होती है और देते समय प्रतिफल की आशा बनी रहती है . बल्कि देना प्रतिफल की आशा में ही होता है .बिना प्रतिफल  की  आशा के हम किसी को कुछ दे नहीं  सकते. देते समय भी हमारे मन मे  ये बना रहता है  कि इस देने के बदले  में हमें क्या  मिलेगा? और प्रेम, कम से कम सच्चा  प्रेम तो इस तरह से  नहीं मिल सकता . दो मांगने वाले , दो भिखारी एक दूसरे को संतुष्ट नहीं कर सकते .
                        प्रेम इंसान कि मूलभूत जरूरतों मे से एक है. यदि व्यक्ति को प्रेम न मिले,  तो प्रायः उसका स्वस्थ विकास रुकता है ,कहीं न कहीं वो कुंठाग्रस्त होता है और हीनता कि ग्रंथि से ग्रस्त  हो जाता है .व्यक्ति आत्मदया कि प्रवृत्ति  का शिकार हो  जाता है और खुद पर तरस खाने लगता है .और  ये सत्य है कि खुद पर तरस खाने वाले व्यक्ति को मरने के हजार बहाने मिल जाते हैं .उसी प्रकार जिस  तरह दूसरों पर तरस खाने वाले व्यक्ति को जीने के  हजार बहाने मिल जाते हैं.                                                          
                         प्रायः आत्महत्या करने वाले व्यक्ति हद दर्जे के कायर नहीं होते, वो हद दर्जे के स्वार्थी होते हैं ,आत्मकेंद्रित व्यक्ति होते हैं .यदि वो अपना जरा भी ध्यान अपने तथाकथित दुखों और परेशानियों से हटाकर दूसरों के दुखों और  परेशानियों पर  केन्द्रित कर यथासंभव प्रयास करते हुए उनके दुखों को, परेशानियों को कम कर  पायेंगे, तो निश्चित्त तौर पर अपना भी भला कर पायेंगे और दूसरों का भी .व्यक्ति को अपने जीवन से संतुष्टि तभी मिलती है और जीवन कि अर्थपूर्णता का अहसास तभी हो पाता है जब वो अपने आसपास रहने  वाले  व्यक्तियों की बेहतरी के लिए कुछ कर पाता  है .                                                                                                        
                       तरस खाना चाहे अपने ऊपर हो या किसी और के ऊपर, कोई अच्छी बात नहीं पर खुद पर तरस खाने से ये ज्यादा उचित है कि व्यक्ति दूसरों पर तरस खाए क्यूंकि दूसरों पर तरस खाकर यदि व्यक्ति उनकी बेहतरी के लिए कुछ करता है , तो निस्संदेह उसके स्वयं के जीवन  की दिशा सकारात्मक  होते जाती है . 
                    प्रायः  व्यक्ति से यह गलती होती है कि वो प्रेम पाने का आग्रह करता है और प्रेम आग्रह से नहीं मिलता.और जो आग्रह से मिले ,वो प्रेम नहीं होता,वो या तो सहानुभूति होती है या दया .प्रायः व्यक्ति जो देता है , प्रकृति उसे ही कई गुना कर व्यक्ति को वापस लौटा देती है.   जो व्यक्ति बिना किसी स्वार्थ के सभी को प्रेम देता है,सबकी परवाह करता है, उसे बिना कहे,बिना बोले,बिना आग्रह किये और बिना आवेदनपत्र लिखे बहुत प्रेम मिल जाता है . बिना प्रेम कि मांग किये जो सब के प्रेम के  मांग कि पूर्ति  करता है, उसकी सब मांग स्वयमेव पुरी हो जाती है . प्रेम का यही नियम है कि वो मांगने से नहीं मिलता है , देने से मिलता है .
            इस दुनिया को बेहतर बनाने में प्रेम देने वालों का बेहद योगदान रहा है, प्रेम मांगने वालों का कम . मदर  टेरेसा, महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरु, अब्राहम लिंकन ऐसे ही कुछ नाम हैं जिन्होने बहुत प्रेम दिया और जिन्हे बहुत प्रेम मिला .व्यक्ति को प्रेम मिलना  एक उपलब्धि है,और कहीं न कहीं मुझे लगता है उसके योगदानों का पुरष्कार भी .प्रायः व्यक्ति पैसों के मामले में कंजूस होता है,ठीक है पर प्रेम के मामले मे कंजूसी शोभा नहीं देती.संकीर्ण प्रेम मोह बन जाता है .जो प्रेम रूपी उपहार प्रकृत्ति ने  शायद सभी को बांटने के लिए हमें दिया हो,उसको सिर्फ किसी एक व्यक्ति तक सीमित कर  देना,किसी एक व्यक्ति  को ही दे देना और बाकी लोगों को वंचित कर  देना, मेरे ख्याल से कंजूसी है, संकीर्णता है, मोह है.                
                          व्यक्ति स्वयं को प्राप्त प्रेम रूपी उपहार को सभी को बांटे , तो उसे प्रायः अनपेक्षित रूप से, अनपेक्षित लोगों से,अनपेक्षित स्थानों से इतना प्रेम मिलेगा जो शायद उसने कभी स्वप्न मे भी सोचा न हो .अतः क्यूँ न हम प्रेम पाने के विषय मे सोचने के स्थान पर प्रेम देने के विषय मे सोचें और निश्वार्थ भावना से प्रेम करें  ? क्या यही  हमारे लिए, हमारे अपनों के लिए और वसुधैव कुटुम्बकम कि भावना के साथ बेहतर विश्व के निर्माण के लिए भी उचित  नहीं होगा ?

5 comments:

  1. behatarin post. sachmuch pyaar dene se pyar milta hai, pyar mangne se nahi.- R K KAUSHIK

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  2. prem abujh rah kar hi sarthak hota hai, lekin kabhi nasamjhi to kabhi samajhdari se anarth bhi hota hai.

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  3. "दो भिखारी एक दूसरे को संतुष्ट नहीं कर सकते"

    लाख टके की बात कही है आपने

    ब्लाग जगत में आपका स्वागत है।
    आशा है कि ब्लाग जगत को आप अपने लेखन से समृद्ध करेंगे।

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  4. सच है -प्रेम न बाड़ी उपजे ,प्रेम न हाट बिकाय .....नव वर्ष मुबारक .

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