Saturday 19 June, 2010

सकल पदारथ और मानव संसाधन

                     सकल पदारथ है जग माहीं - इस विश्व मे सकल पदार्थ है.  ये बहुत हद तक हमारे  चुनाव के  उपर निर्भर करता है की हमें क्या मिलता है और जो मिलता है उसका हम किस प्रकार सदुपयोग कर पाते हैं .संसार मे फूल भी हैं और गन्दगी भी.  मधुमक्खी हमेशा फूलों पर बैठती है, मक्खी  गन्दगी पर .मधुमक्खियाँ कालोनी बनाकर रहती हैं,मक्खी की कोई कालोनी नहीं होती .मधुमक्खियाँ आपस मे सहयोग की भावना से कार्य करती  हैं, मक्खियों मे कोई सहयोग की भावना नहीं होती . मधुमक्खी को जब कोई छेड़ता  है तभी  वो दंड देती है, उसके पहले शांति से रहती हैं .मधुमक्खियाँ अकारण किसी को कष्ट नहीं देती . मधुमक्खी शहद  देती है ,मक्खी बीमारी फैलाती  है .यही कारण है की मधुमक्खी को पाला जाता है,मक्खी को कोई देखना भी पसंद नहीं करता.मधुमक्खी जानती हैं की संसार मे फूल भी है और गन्दगी भी परन्तु वह इन दोनों विकल्पों से फूल का ही चुनाव करती है,गन्दगी का नहीं. व्यक्ति को भी फूल का चुनाव करना चाहिए,गन्दगी का नहीं . हंस की तरह नीर-क्षीर विवेक से युक्त  होकर पानी और दूध को अलग-अलग कर दूध को ग्रहण करना चाहिए .
            बहरहाल,  वास्तव मे मानव संसाधन की उत्कृष्टता   ही प्राकृतिक संसाधनों का दोहन या उपयोग सुनिश्चित करते हुए  धन उत्पन्न करती है,नहीं तो 'अमीर धरती गरीब लोग' वाली कहावत चरितार्थ होती है . आज से लगभग ५०० वर्ष पूर्व भी अमेरिका मे प्रचुर प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध था, परन्तु  वहां रेड इंडियन निवास करते थे, और वह विश्व का सर्वाधिक शक्तिशाली देश नहीं था. आज वही अमेरिका है, लगभग वही प्राकृतिक संसाधन आज भी वहां है और वह विश्व का सर्वाधिक शक्तिसंपन्न देश माना  जाता है.प्राकृतिक संसाधन तो वही हैं पर मानव संसाधन की गुणवत्ता बदल चुकी है .
                         मानव संसाधन की संख्या या मात्रा से भी महत्वपूर्ण होती है उसकी गुणवत्ता. हमारे देश की जनसंख्या अधिक है परन्तु हमसे भी कम जनसंख्या वाले देश विकासशील  से विकसित हो चुके हैं ,परन्तु हम अभी विकासशील ही है .चीन की जनसंख्या तो हमसे भी  अधिक है परन्तु वह आज विश्व की महत्वपूर्ण महाशक्तियों मे से एक है. चीन   के विकास मे मैं मानता हूँ की इस देश  के मानव संसाधन की उत्कृष्टता के साथ साथ यहाँ  के राजनयिकों के यथार्थवादी दृष्टिकोण  का भी बेहद महत्व है .यदि ये मेरा पूर्वाग्रह नहीं तो मैं मानता हूँ की इस राष्ट्र ने सत्यमेव  जयते के स्थान पर शक्तिमेव जयते  को ही व्यवहारिक रूप से  अपना आदर्श  वाक्य बनाया हुआ है . भारत को इस देश से सीख  लेनी चाहिए . वास्तव मे जिसे हम  अपना दुश्मन मानते हैं या भयभीत होते हैं, उसके पास हमे बहुत कुछ सिखाने के लिए होता है. चीन भी एक ऐसा ही देश है .
            'चीन इतिहास से सबक लेता है, भारत कभी नहीं लेता और जो इतिहास से सबक लेता है वही देश तेजी से तरक्की करता है'. हमें ये समझना होगा की बीसवीं सदी के  मध्य मे चीन कोई मजबूत शक्ति नहीं थी.१५ अगस्त १९४७ को भारत आजाद हुआ और १ अक्टूबर १९४९ को पीपल्स रिपब्लिक आफ चाइना अस्तित्व मे आई.भारत और चीन  दोनों देशों की स्थितियां  कमोबेश एक सामान थी.भारत तो सिर्फ ब्रिटेन का उपनिवेश था, चीन अनेक  यूरोपीय देशों का.चीनी तरबूजों का काटा जाना-तात्कालिक चीनी साम्राज्य का ब्रिटेन,फ्रांस,रूस, अमेरिका,जापान आदि साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा अपने-अपने  आधिपत्य क्षेत्रों मे बांटे  जाने से विश्व इतिहास का प्रत्येक विद्यार्थी परिचित होगा . चीन गृहयुद्ध के दौर से भी गुजरा ,जापान के आक्रमण का शिकार हुआ, परन्तु १ अक्टूबर १९४९ के बाद इस देश ने तरक्की की और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा .आज वह विश्व की सर्वप्रमुख आर्थिक और सामरिक शक्तियों मे से एक है .निस्संदेह चीन बहुत आगे निकल चुका  है .इसलिए भारत को सदैव अपने छद्म आदर्शवाद का राग अलापने की जगह अपने पडोसी चीन से सीखना चाहिए -यथार्थवाद और विकास के प्रति सच्ची प्रतिबद्धता.
                          और सिर्फ चीन से ही क्यूँ ,हर विकसित राष्ट्र से सीखना चाहिए .भारत को विश्वगुरु कहा जाता था परन्तु आज  विश्वगुरु वही हो सकता है जो सदैव अच्छे विद्यार्थी की भूमिका का निर्वहन कर सीखने की प्रक्रिया निरंतर जारी रखे और सीखा सभी से जा सकता है - बस सीखने की सच्ची लगन होनी चाहिए . 

5 comments:

  1. सुन्दर आलेख. सही कहा है. विकल्प उपलब्ध रहते हैं. मधुमक्खी की तरह सही चयन ही हमारी उन्नति के द्वार खोलेगा.

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  2. kadam kadam badhaye ja. shabash. AARAMBH par jakar venktesh shukla ji ka lekh chhattisgarh ek sone ki chidiya padh kar dekho.

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  3. आपका आलेख इस बात का सबूत है, आप एक संवेदनशील इन्सान है. अच्छा लेख लिखने के लिए साधुवाद!
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    जिन्दा लोगों की तलाश!
    मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!


    काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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    सच में इस देश को जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

    हमें ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

    इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

    अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

    आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

    सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

    (सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
    राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666

    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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  4. आपके ब्लोग पर आ कर अच्छा लगा! ब्लोगिग के विशाल परिवार में आपका स्वागत है! अन्य ब्लोग भी पढ़ें और अपनी राय लिखें! हो सके तो follower भी बने! इससे आप ब्लोगिग परिवार के सम्पर्क में रहेगे! हैप्पी ब्लोगिग!

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